Wednesday, October 16, 2019

एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ

ना ज्यादा कुछ जान पाता हुँ
ना ज्यादा कुछ बोल पाता हुँ
ना ज्यादा होशियार हुँ
ना ज्यादा समझदार  बन पाता हुँ
जो कुछ करता हुँ वस दिल से कर आता हुँ
ना किसी के दिल को दुखाता हुँ
और ना हि किसी को चोट पहुँचाता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ


एक भुखे की भुख मिटाने की कोशिश कर आता हुँ
और एक प्यासे की प्यास बुझाता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभाता हुँ



ना मैं मंदिर, मस्जिद़ या गुरुद्वारे जा पाता हुँ
और ना हि किसी चर्च या गिरजाघर जा पाता हुँ
मैं तो वस इन धर्म स्थानों के बाहर बैठे
गरीबों की सेवा कर लौट आता हुँ


ना तो बहुत धनी हुँ ना हि
बहुत गरीब हुँ जो कुछ है वो वस
मिल बांट कर खाता हुँ
में तो बस एक छोटा सा ईंसान हुँ
ईंसानियत निभाता हुँ

ना किसी फैशन से मुझे कोई लगाव है
ना किसी पार्टी या नाच गाने मेैं जाता हुँ
मैं तो बस एक दरिद्र को तन ढकने के लिए
कुछ कपड़े दे आता हुँ
जो अनाथ है, वेसहारा हैं, जिनकी जिंदगी मे ना कोई रंग है
ना रोनक है
उनके साथ बैठ कर हंसी के कुछ पल विता आता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ


ना मैं किसी दारु, जुआ या किसी नशे के लोभ में आता हुँ
ना किसी से द्वेष और तृष्णा कर पाता हुँ
मैं तो वस एक भटके हुए को राह दिखा आता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ



Monday, October 14, 2019

एक शहर ऐसा भी



      यह कविता, यूक्रेन के एक शहर चरनोविल से संबधित है जहां पर 26 अप्रेल 1986 को एक बहुत ही दुखदायी नाभकिय हादसा हुआ था जिसमें काफी जानें गई थी और क्षेत्र में रेडियोऐक्टिव तत्वों की मात्रा अत्याधिक होने के कारण उस शहर को पूरी तरह खाली करवाना पड़ा था। इस कविता का शिर्क्षक है एक शहर ऐसा भी उम्मिद है की कविता के माध्यम से वहां क्या घटित हुआ था का भाव आप तक पहंच पाएगा।



एक शहर ऐसा भी

      जींदगी की भागदौड़ में साहिब हर कोई व्यस्त है-2
      किसी को उसकी मजबुरीयां दौड़ा रही है-2
      तो किसी को जीवन में और उंचा उठने की चाहत दौड़ा रही है-2
      जींदगी की इसी दौड़ में एक शहर ऐसा भी-2
जिसने अपना अस्तित्व ही खो दिया-2

(चरनोविल और आसपास का क्षेत्र इस नाभकिय हादसे से पहले बहुत ही विकसित हुआ करता था। बर्ष उन्नीस सौ उन्यासी से ही क्षेत्र में हर वो सुविधा माजुद थी जो की बहुत से विकासशील या अविकसित देशों के पास वर्तमान समय में भी उपल्ब्ध नहीं है, परन्तु इस हादसे ने सब कुछ बर्बाद कर दिया था)

                      होती थी साहिब जिन गलियों मे चहल-पहल कभी-2
                              दिखते है वंहा अव सिर्फ उजडें हुए
                              घरों,टुटी हुई दिवारों के खंड़हर ही-2
                             वो बाल-विहार मे पड़े टुटे खिलौने-2,
                     स्कूल के खाली कमरे, अस्पताल के खाली विस्तरे-2
                              सब का सब विरान हो गया
                              ये देख कर साहिब मेरा मन
                              विचलित परेशान हो गया-2।

(नाभकिय संयत्रों के आसपास का लगभग तीस किलोमीटर तक का क्षेत्र अभी भी रेडियोएक्टिव तत्वों से ग्रसीत है तथा यहां की सरकार ने उस क्षेत्र को वहिष्कृत श्रेणी में रखा है। लगभग 108 गांव को ईस हादसे के बाद खाली करवाना पड़ा था। साथ ही में क्षेत्र के स्कूल एवं अस्पतालों को भी खाली करवाना पड़ा था)
                             
                             

उन मासूम बच्चों का क्या कसूर-2
जिनसे उनका बच्चपन छिन गया-2
जिनसे उनके दोस्त, दोस्ती और याराना छूट गया-2
वो झुले, वो गलियां, वो गलियारे जहां होते थे
लुका-छुप्पी के खेल और मौज मस्ती के नजारे-2
सब छिन गया।


(चरनोविल के पास प्रपीयात क्षेत्र में एक बहुत बड़ा मनोरंजन उद्यान बन रहा था जिसको बच्चों एवं आम लोगों के लिए एक मई उन्नीस सौ छयासी में मई दिवस के उपल्क्षय मे खुलना था। उस उद्द्यान को लेकर बच्चो के मन में तरह-2 के सपने थे। परन्तु इस चरनोविल हादसे के कारण वो उद्द्यान कभी भी नही खुल पाया।  बच्चों से मानो उनका सब कुछ ही छिन गया था।)

                      हम तो समझे थे साहिब थोड़ी सी आग लगी है
                      जल्दी ही बुझ जाएगी-2 
                      हमें नहीं था मालूम साहिब ये आग हमारी
                      खुशियों में ही लग जाएगी-2

(जब ये नाभकिय हादसा हुआ था उस समय लोग अपने घरों से बाहर निकल कर आग के धुयें को देख रहे थे। वो सोच रहे थे कहीं आग लगी है जल्दी ही बूझ जाएगी और सुबह जिन्दगी समान्य हो जाएगी। मगर इस अनर्थ का उनको जरा भी अंदेशा नहीं था)

उनको क्या मालूम था साहिब जो दौड़े थे
अपना कर्तव्य निभा उस आग को बुझाने को-2
वह आग भी लगी थी उनकी जींदगी को जलाने को-2

(इस हादसे के कारण लगी हुई आग को बूझाने के लिए जो दमकल केन्द्र के कर्मचारी गये थे उनमें से बहुत से एक सप्ताह के भीतर ही शरीर में रेड़िएशन की मात्रा अधिक चली जाने के कारण मर गये थे। श्री तेलियात निकोव जो दमकल दल का नेतृत्व कर रहा था वह कुछ समय के वाद कर्क रोग से ग्रसित हो गया तथा तिरपन बर्ष की आयू में उसकी मृत्यु हो गयी थी)


ऐसा क्यूं हुआ, कौन इसका जिम्मेदार है-2
                              क्या वो लोग जो वहां काम कर रहे थे-2
                    या वह सरकार जो दुनिया मे और अधिक शक्तिशाली
                              बनने की दौड मे लगी हुई थी-2
                              आखिर कौन-2 इसका जिम्मेदार है-2

(जब जीवन में बहुत कुछ जल्दी-2 प्राप्त करने की हौड़ लग जाती है, तो ईंसान कभी-2 क्या अच्छा है क्या बुरा है सब भूल जाता है। हो सकता है ये नाभकिय हादसा भी उसी जल्दबाजी का नतीजा था। उस समय सोवियत संघ की सरकार चरनोविल में 10 नाभिकीय उर्जा संयत्र बना रही थी जिसमें से 5 का काम लगभग पूरा हो चुका था परन्तु इस हादसे ने सब कुछ बर्बाद कर दिया था)


      सब कुछ बर्बाद हो गया-2
      न बचा कुछ छुपाने को-2
      वो पेड़ों की छाया-वह नदी का पानी-2
      सब कुछ जहर हो गया-2
      वो हंसता खेलता शहर सुनसान और विरान हो गया-2

(इस हादसे के बाद बहिष्कृत क्षेत्र में माजूद पेड़ पौधे और नदियां सब रेडियोएक्टिव के प्रभाव मे आ गए, कहा जाता है की प्रीपयात नदी का पानी बहाव के काऱण अभी भी शुद्ध है परन्तु उसकी सतह रेडियोएक्टिव प्रभाव से ग्रसित है। )


                             वो बजुर्ग जो बैठे थे अपने बजुर्ग साथियों के
                               साथ जीवन के अंतिम लम्हे बिताने को-2
                               नही तैयार थे अपने जीवन के अंतिम
                                पड़ाव मे कंहि दूर जाने को-2
                                घर से तो दूर हो गये थे वो-2
                          अपने मन और आत्मा से दूर नही हो पाये थे-2
                         लौट आए है वो वापिस अपने उन्ही घरों में
                        जिन्दगी की अंतिम सांस तक जीवन विताने को-2

(जब शहर को खाली करवाया जा रहा था तो बहुत से बजुर्गों ने वहां से जाने से इन्कार कर दिया था, उनका कहना था कि अब वो उम्र के अंतिम पड़ाव में है और जैसे भी हो वहीं पर अपना जीवन विताना चाहते है। परन्तु जबरन उनको वहां से खाली करवाया गया था। अब काफी बर्षों बाद उनमें से कुछ बजुर्ग वापिस अपने घरों मे लौट आए हैं तथा जीवन की अंतिम सांस तक वंही जीवन विताना चाहते है)

चरनोविल के पुरे दर्द को वयान करने के लिए ये कविता अधुरी  है। अगर आप इस दर्द की दांस्ता को और जानने के इच्छुक है तो आप एच बी ओ की चरनोविल श्रंखला देख सकते है। इस श्रंखला को हाल ही में 10 एमी पुरस्कार मिले है।            
                             

(रवि कुमार)



                             
                             
       

Finding peace in the grief stricken world




My reflection is exhorting me to osculate the welkin
Intent is to vanquish the macrocosm
Tribulations of the Universe are tantalizing me badly
Myself ordained to struggle for underlying tranquility in the Universe,

None of us is striving for peace
Vague accomplishments are narrowing the universe
Sinewy is engulfing the emaciated
Winds and waves of cold war is vitiating the free air
Tranquility seems far reaching

Who is to blame
Universe seems to be a game
Humankind is playing it
and cryptically annulling peace 


Forgotten is Humanity
Supreme(d) is the vanity
The vanity which yields hate
the vanity which creates fear
devastates the  lives and establishments and wills of the human kind,

Gears of peace are fragile
no one is trying for cementing them
threads of trust are rusting
show off is taking mileage
peace is blurred  and crushed for a futile humor

                                                                                    (Ravi Kumar)