Wednesday, October 16, 2019

एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ

ना ज्यादा कुछ जान पाता हुँ
ना ज्यादा कुछ बोल पाता हुँ
ना ज्यादा होशियार हुँ
ना ज्यादा समझदार  बन पाता हुँ
जो कुछ करता हुँ वस दिल से कर आता हुँ
ना किसी के दिल को दुखाता हुँ
और ना हि किसी को चोट पहुँचाता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ


एक भुखे की भुख मिटाने की कोशिश कर आता हुँ
और एक प्यासे की प्यास बुझाता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभाता हुँ



ना मैं मंदिर, मस्जिद़ या गुरुद्वारे जा पाता हुँ
और ना हि किसी चर्च या गिरजाघर जा पाता हुँ
मैं तो वस इन धर्म स्थानों के बाहर बैठे
गरीबों की सेवा कर लौट आता हुँ


ना तो बहुत धनी हुँ ना हि
बहुत गरीब हुँ जो कुछ है वो वस
मिल बांट कर खाता हुँ
में तो बस एक छोटा सा ईंसान हुँ
ईंसानियत निभाता हुँ

ना किसी फैशन से मुझे कोई लगाव है
ना किसी पार्टी या नाच गाने मेैं जाता हुँ
मैं तो बस एक दरिद्र को तन ढकने के लिए
कुछ कपड़े दे आता हुँ
जो अनाथ है, वेसहारा हैं, जिनकी जिंदगी मे ना कोई रंग है
ना रोनक है
उनके साथ बैठ कर हंसी के कुछ पल विता आता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ


ना मैं किसी दारु, जुआ या किसी नशे के लोभ में आता हुँ
ना किसी से द्वेष और तृष्णा कर पाता हुँ
मैं तो वस एक भटके हुए को राह दिखा आता हुँ
एक छोटा सा इंसान हुँ वस इंसानियत निभा आता हुँ



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